➤ शरीर का ऐसा तंत्र जिसके द्वारा नाइट्रोजानी उत्सर्जन पदार्थो को शरीर से बाहर निकाला जाता है, उत्सर्जी तंत्र कहलाता है।
– मानव के उत्सर्जी तंत्र मे निम्न भाग होते है-
1. वृक्क 2. मूत्रवाहिनी
3. मूत्राशय 4. मूत्र मार्ग
– वृक्क मुख्य उत्सर्जी तंत्र होता है मूत्रवाहिनी, मूत्राशय, मूत्र मार्ग सहायक उत्सर्जी अंग होते है।
– वृक्क ( 10*5*3 ) सेमी3 – वृक्क के अध्ययन को ‘नेफ़्रोलोजी‘ कहते है।
– यह सेम के बीज की आकृति की होती है दोनों वृक्को का वजन 340 ग्राम ( 170 ग्राम प्रत्येक ) होता है।
– वृक्क की कार्यात्मक या शारीरिक इकाई नेफ़्रोन होती है।
– प्रत्येक वृक्क मे 1.3 मिलियन नेफ़्रोन होते है।
वृक्क निम्न से निर्मित होते है-
1. बोमेन सम्पुट और ग्लोमेरूलस
2. समीपस्थ घुमावदार नलिका
3. हेनले का लूप
4. दूरस्थ घुमावदार नलिका
– यह उदरगुहा मे कशेरुक दण्ड के दोनों ओर एक जोड़ी होती है। इसकी उत्पत्ति मिजोडर्मल होती है।
– उद्भव के आधार पर वृक्क तीन प्रकार के होते है।
:- प्रोनेफ्रोनिक – यह सबसे सरल प्रकार है। यह जलीय जीवों ( मछ्ली, तेडपोल, लार्वा ) मे पाया जाता है।
:- मिजोनेफ़्रोनिक– यह वयस्क मेढक मे पाया जाता है। इस नेफ़्रोन मे हेनले का लूप नही होता है।
:- मेटानेफ़्रोनिक – ऐसे वृक्क पूर्ण विकसित होते है। इनमे नेफ़्रोन मे PCT, हेनले का लूप व DCT पाया जाता है यह सरीसृप, पक्षी व स्तनधारियो मे पाये जाते है।
– प्रत्येक वृक्क सेम के बीज के आकार का होता है प्रत्येक वृक्क के चारो ओर पेरिटोनियम झिल्ली होती है। इसके अंदर संयोजी उत्तक भरा होता है।
– किडनी के दो भाग होते है- बाहरी कार्टेक्स व आंतरिक कार्टेक्स होते है।
– कुछ स्तनधारियो मे एक वृक्क मे एक ही पिरामिड होता है जैसे हाथी व खरगोश, जबकि मानव मे 8 – 12 पिरामिड हो सकते है।
– वृक्क के अंदर अनेक कुण्डलीत नलिकाए पाई जाती है जिन्हे नेफ़्रोन कहते है यह वृक्क की संरचना व क्रियात्मक ईकाई कहलाती है।
वृक्क के मुख्य कार्य मूत्र का निर्माण करना, रक्त का शोधन करना व उत्सर्जन करना होता है।
– नेफ़्रोन वृक्क की संरचनात्मक व क्रियात्म्क ईकाई होती है इसके दो भाग होते है –
– 1. मैल्पीघी काय 2. स्त्रावी नलिका
– मैल्पीघी काय मे कार्टेक्स होता है। इसमे एक बोमेन सम्पुट होता है व केशिका गुच्छ / ग्लोमेरूलस भी होता है जो रक्त का परानिष्पंदन करता है।
– मूत्राशय पक्षियो और साँपो ( एवीज & सरीसृप ) मे नहीं पाया जाता है।
– इसके भी तीन भाग होते है –
1. PCT समीपस्थ संवलित नलिका
2. DCT दूरस्थ संवलित नलिका
3. संग्रह नलिका
– PCT मे सर्वाधिक पुनरअवशोषण होता है। PCT व DCT के बीच हेनले का लूप पाया जाता है जिससे दो भुजा होती है। अवरोही भुजा व आरोही भुजा होती है। अवरोही भुजा जल के लिए पारगम्य होती है व आरोही भुजा खनिज लवण के लिए पारगम्य होती है।
– यूरिया का निर्माण आर्निथीन चक्र द्वारा लीवर मे होता है। इस आर्निथीन चक्र की खोज क्रेब हेसलेट ने की थी।
– आर्निथीन चक्र के द्वारा यूरिया के 1 अणु बनाने के लिए 3ATP, 1CO2, 2NH3 की आवश्यकता होती है।
– मूत्र का निर्माण परानिष्पंदन, पुनरअवशोषण व स्रवण द्वारा होता है।
– एक वयस्क मनुष्य प्रतिदिन औसतन 1 -1.5 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है। मूत्र का रंग हल्का पीला व थोड़ा अम्लीय होता है व्यक्ति प्रतिदिन 25 – 30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन करता है।
– मूत्र मे ग्लूकोस की उपस्थिती ग्लाइकोसूरिया काय की उपस्थिती किटोनयूरिया कहलाती है।
1. अमीनोटेलिक – यह अमीनो अम्ल का त्याग करते है।
उदाहरण – मोलस्का संघ ( घोंघा )
2. अमोनिया टेलिक / अमोनोटेलिक – यह जीव अमोनिया का त्याग करते है। इसके लिए सर्वाधिक पानी की आवश्यकता होती है।
उदाहरण – जलीय जीव
3. यूरियोटेलिक – यह जीव यूरिया का त्याग करते है।
उदाहरण – स्तनधारी
4. यूरिकोटेलिक – यह जीव यूरिक अम्ल का त्याग करते है।
– उदाहरण – पक्षी व सरीसृप
– मकड़ी के द्वारा गुआनीन का उत्सर्जन किया जाता है।
– कबूतर हाइपोजेन्थिन का उत्सर्जन करता है।
– कुत्ता एलेंटोइक का उत्सर्जन करता है ।
➤ गुर्दे का निस्यंदन ईकाई कौनसी होती है – नेफ़्रोन
➤ मूत्र बनता है – संग्राहक वाहिनियों मे
➤ वृक्क का प्रकार्यत्मक यूनिट है – वृक्काणु ( नेफ़्रोन )
➤ गुर्दे ( किडनी ) का कार्यात्मक यूनिट क्या है – नेफ़्रोन
➤ मूत्र का पीला रंग किसकी मौजूदगी के कारण होता है ? – यूरोक्रोम
➤ निर्जलीकरण के दौरान आमतौर पर शरीर से किस पदार्थ की हानी होती है ? – सोडियम क्लोराइड
➤ मूत्र के स्त्रावन को बढ़ाने वाली औषधि को कहते है ? – डाईयूरेटिक
➤ मूत्र का असामान्य घटक है ? – एलब्यूमिन
➤ भ्रूण की अपरापोषिका किसमे सहायक होती है ? – उत्सर्जन
➤ हेमीकार्डेटा मे उत्सर्जन किसके द्वारा होता है ? – कोशिका गुच्छ
➤ हरित ग्रंथियां किससे संबन्धित है ? – उत्सर्जन
➤ किसी जीवित देह के भीतर कोशिका या उत्तक की मृत्यु को कहते है ? – नेक्रोसिस
➤ वृक्क 140 ग्राम वजन का होता है तथा दो भागो मे विभक्त होता है – बाहरी कार्टेक्स एवं भीतरी मेडूला
➤ प्रत्येक वृक्क का निर्माण 13000000 वृक्क-नलिकाओ से मिलकर हुआ है ये नलिकाए कहलाती है – नेफ़्रोन
➤ नेफ़्रोन वृक्क की कार्यात्मक ईकाई कहलाती है जिसमे मौजूद एक छोटी प्यालीनुमा रचना को कहते है – बोमन सम्पुट
➤ वृक्क का मुख्य कार्य है – रक्त प्लाज्मा से अनावश्यक एवं अनुपयोगी पदार्थो को जल की कुछ मात्रा के साथ मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर निकालकर, इसको शुद्ध बनाना है।
➤ मूत्र मे उपस्थित वर्णक हल्का पीला होता है – यूरोक्रोम के कारण
➤ यूरोक्रोम का निर्माण होता है – हीमोग्लोबिन के विखंडन से
➤ वृक्क मे बनने वाली पथरी का मुख्य अवयव होता है – कैल्सियम ओक्जोलेट
➤ फेफड़े द्वारा दो प्रकार के गैसीय पदार्थो का उत्सर्जन होता है – कार्बनडाईऑक्साइड एवं जलवाष्प
➤ क्रियोटिनिन किस के मूत्र मे पाया जाता है ? – गर्भवती एवं दुग्धपान कराने वाली महिला के मूत्र
➤ मनुष्य के मूत्र द्वारा प्रतिदिन कितना एमिनो अम्ल का उत्सर्जन होता है ? – लगभग 15 ग्राम
➤ यकृत मे यूरिया का संश्लेषण किस चक्र द्वारा होता है ? – आर्निथीन – आर्जिनिन चक्र
➤ रक्त मे जब यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है तो वह कहलाता है ? – यूरीमिया
➤ मूत्र मे कौन सा पिग्मेंट पाया जाता है – यूरोक्रोम
➤ वृक्क किस झिल्ली के द्वारा घिरा होता है – पेरिटोनियम झिल्ली
➤ यकृत कोशिकाओ मे ओक्सीडेटिल डीएमिनेशन की क्रिया कहाँ होती है ? – माइटोकोंड्रिया मे
➤ पुनः अवशोषण की क्रिया नेफ़्रोन के किस भाग मे होती है ? – स्त्रावी भाग
➤ मकड़ियां अपने उत्सर्जन मुख्य रूप से किस पदार्थ के रूप मे करती है ? – ग्वानीन
➤ यूरोक्रोम का निर्माण कैसे होता है ? – लाल रुधिर कणिकाओ के हीमोग्लोबिन से
➤ जब वृक्क कार्य करना बंद कर देते है तो कौन सा पदार्थ रक्त मे जमा हो जाता है ? – नत्रजनित अपशिष्ट पदार्थ
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