स्थानीय शासन -
- पंचायती राज
- नगरीय शासन
- स्थानीय शासन राज्य सूची का विषय है जिस पर सामान्य परिस्थितियों में कानून निर्माण का अधिकार राज्यों के पास है।
पंचायती राज-
- जवाहर लाल नेहरू ने पंचायतों को लोकतंत्र की प्रथम पाठशाला माना है। नीति के निदेशक तत्व के अनुच्छेद- 40 में सर्वप्रथम पंचायतों के गठन के लिए राज्य सरकार को निर्देश दिए गए, जिसके अंतर्गत यह कहा गया है कि राज्यों को इन पंचायतों का गठन कर उन्हें शक्तियां प्रदान की जानी चाहिए। पंचायती राज संस्थाओं में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए 02 अक्टूबर 1992 को के. एम. मुंशी समिति की सिफारिशों पर भारत सरकार के द्वारा सामुदायिक विकास कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
- 1957 के बलवंत राय मेहता ने तीन स्तर पर पंचायती राज संस्थाओं के गठन की सिफारिश की -
- ग्राम
स्तर - ग्राम पंचायत
- खंड
स्तर - पंचायत समिति
- जिला स्तर - जिला परिषद
- इन्होंने
पंचायत समिति पर विशेष बल दिया तथा लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की। 2
अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव में तात्कालीन प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरू के द्वारा पंचायती राज का उद्घाटन किया गया। राजस्थान, पंचायती राज
लागू करने वाला देश का प्रथम राज्य तथा आंध्र प्रदेश (11 अक्टूबर) दूसरा राज्य
बना।
- 1977 में गठित अशोक मेहता समिति ने दो स्तर पंचायतों के गठन की सिफारिश की -
- जिला परिषद
- मंडल परिषद
- इन्होंने जिला परिषद पर विशेष बल दिया तथा पंचायती राज संस्थाओं में एससी/एसटी को आरक्षण तथा राजनीतिक दलों की भागीदारी की सिफारिश की ।1986 में गठित लक्ष्मीमल सिंघवी समिति ने पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने, ग्राम सभा की स्थापना करने, नियमित चुनाव कराने तथा पंचायतों को शासन का तीसरा स्तर घोषित करने की सिफारिश की।
- पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए राजीव गांधी सरकार के द्वारा 64वें संविधान संशोधन (1989) के माध्यम से प्रयास किया गया परंतु विदेश विधेयक राज्यसभा में असफल हो गया।
- नोट:
बलवंत राय मेहता समिति - 1957
- अशोक मेहता - 1977
- पी के
थुंगन - 1988
- एल.एम. सिंघवी - 1986
- मिर्धसमिति - 1991
73वां संविधान संशोधन (1992)-
- इस
संशोधन की मुख्य विशेषताएं निम्न है -
- पंचायतों को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
- पंचायती राज को तीन स्तर पर मान्यता प्रदान की गई।
खंड स्तर - पंचायत समिति
जिला स्तर - जिला परिषद
- परंतु जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है उन्हें मध्यवर्ती स्तर (पंचायत समिति) की स्थापना न करने की छूट प्रदान की गई। ग्राम सभा को मान्यता (अनुच्छेद 243-ए)- इसके अंतर्गत गांव के सभी पंजीकृत वयस्क मतदाता शामिल होते है तथा इस संबंध में कानून बनाने का अधिकार राज्यों के विधान मंडल को प्रदान किया गया।
- पंचायती राज संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया। पंचायती राज संस्थाओं में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई। sc-st को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान किया गया। पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित की गई जिसे वर्तमान में 50% कर दिया गया है।
- पंचायती राज संस्थाओं के नियमित रूप से चुनावों का संपादन कराने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग का प्रावधान किया गया। पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय स्थिति समीक्षा के लिए प्रत्येक राज्य में राज्य वित्त आयोग का प्रावधान किया गया। राज्यों को यह अधिकार दिया गया कि वो मध्यवर्ती स्तर (पंचायती स्तर) व उच्च स्तर (जिला परिषद) में एमएलए व एमपी को प्रतिनिधित्व प्रदान करें।
पंचायती राज के सम्मुख चुनौतियां
- पर्याप्त
वित्तीय संसाधनों का अभाव
- निरक्षरता
- विषयों
का अस्पष्ट विभाजन
- महिला प्रतिनिधियों का पुरुषों पर निर्भर होना
- दलीय राजनीति
योग्यता-
- पंचायती राज निकाय की मतदाता सूची में उसका नाम हो।
- किसी स्थानीय प्राधिकरण व पंचायती राज निकाय के अधीन किसी भी वैतनिक या लाभकारी पद पर कार्यरत न हो।
- मानसिक या शारीरिक दोष से ग्रसित न हो।
- सरपंच व वार्ड पंचों का चुनाव ग्राम पंचायत के व्यस्त मतदाताओं द्वारा जबकि उप सरपंच का चुनाव वार्ड पंचो द्वारा बहुमत के आधार पर किया जाता है। सरपंच को निर्णायक मत देने का अधिकार है।
- 5 वर्ष की होती है।
- वार्ड पंच, उप सरपंच व सरपंच अपना त्यागपत्र विकास अधिकारी को सौंपते है।
नगरीय शासन -
- नगरीय शासन के अंतर्गत नगर निगम, नगर परिषद तथा नगर पालिका के शासन को शामिल किया जाता है। 1687 में मद्रास में सर्वप्रथम नगर निगम की स्थापना की गई। राजीव गांधी सरकार के द्वारा 65 वें संविधान संशोधन 1989 के माध्यम से नगरीय संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता देने का प्रयास किया गया, परंतु विधेयक राज्यसभा में असफल हो गया।
74वां संविधान संशोधन-
- इस संशोधन की मुख्य विशेषताएं निम्न है -
- नगरीय
संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्रदान की गई।
- तीन स्तर पर नगरीय शासन को लागू किया गया -
- नगर
निगम - बड़े नगरों के लिए
- नगर
परिषद - छोटे नगरों के लिए
- नगर
पंचायत - ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में परिवर्तित होने वाले कस्बो के
लिए
- वार्ड समिति को मान्यता
- नगरीय संस्थाओं का कार्यकाल 5 वर्ष निश्चित किया गया।
- नगरीय संस्थाओं में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई।
- नगरीय संस्थाओं के चुनावों का संपादन करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को मान्यता प्रदान की गई।
- नगरीय संस्थाओं की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य वित्त आयोग को मान्यता प्रदान की गई।
- sc-st को उनकी जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण प्रदान किया गया।
- महिलाओं के लिए 1/3 सीटें आरक्षित
- नगरीय संस्थाओं को कर लगाने का अधिकार प्रदान किया गया।
- महानगर आयोजन समिति को मान्यता।
टिप्पणी पोस्ट करें
If you have any doubts, Please let me know