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Magadha Empire – Haryanka Dynasty, Shishunaga Dynasty and Nanda Dynasty

Magadha Empire - Haryanka Dynasty, Shishunaga Dynasty and Nanda DynastyMagadha Empire - Haryanka Dynasty, Shishunaga Dynasty and Nanda Dynasty

मगध साम्राज्य – हर्यक वंश, शिशुनाग वंश एवं नंद वंश

हर्यक वंश ( 544 ई.पू. – 492 ई.पू. )-

 संस्थापक – बिम्बिसार

शासक – 544 ई.पू. से 492 ई.पू. 

उपनाम – मत्स्य पुराण के अनुसार क्षेत्रोजस 

बौद्ध ग्रंथो के अनुसार श्रोणीय,जैन साहित्य के अनुसार श्रोणिक 

प्रथम कार्य – अवन्ती के शासक प्रद्धोत व गांधार के शासक पोष्करसारन के साथ समझोता। 

बिम्बिसार ने पाण्डुरोग से ग्रसित प्रद्धोत के पास अपना प्रसिद्ध वैध जीवक को भेजा था। 

वैवाहिक संबंध – कौशल नरेश प्रसेन्नजीत की बहन कौशलादेवी,वैशाली नरेश चेटक की बहन चेलना मद्र की राजकुमारी क्षेमा से विवाह। 

अंतिम दिन- पाली व प्राकृत साहित्य के अनुसार युवराज कुणिक /अजातशत्रु द्वारा बिंबिसार की हत्या कर दी। 

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अजातशत्रु ( 492 ई. पूर्व से 462 ई. पूर्व ) –

  • – इसे कुणिक उपनाम से भी जाना जाता है ।
  • – पिता की हत्या व लिच्छवि गणराज्य के विरुद्ध राजगृह का दुर्गीकरण इसके द्वारा किया गया प्रथम कार्य था।
  • – कौशल नरेश प्रसेन्नजीत ने बहनोई की हत्या व बहन की मृत्यु से क्षुब्ध होकर पितृहत्या अजातशत्रु से काशीग्राम वापस ले लिया। जिसके कारण कौशल व मगध के मध्य संघर्ष हुआ जिसकी परिणिति प्रेसन्नजीत की पुत्री बजीरा से अजातशत्रु के विवाह के रूप मे हुई।
  • – अजातशत्रु ने वत्सराज उदयन के साथ अपनी पुत्री पद्मावती का विवाह किया।
  • – वैशाली की रानी पद्मावती के उकसाने पर अजातशत्रु ने बिम्बिसार द्वारा वैशाली के विरुद्ध युद्ध किया यह युद्ध 10 वर्षो तक चला। युद्ध में महाशिला कंटक व रतमूसल हथियारों की मदद से विजय प्राप्त की ।
  • महाशिला कंटक ‘पत्थर फेंकने वाली मशीन’ थी तो रतमूसल ‘गदा युक्त गाड़ी‘ थी।
  • – अजातशत्रु ने आर्यमंजु श्रीमूलकल्प के अनुसार अंग, वाराणसी व वैशाली के कई क्षेत्रों पर अधिकार करके मगध साम्राज्य का विस्तार किया।
  • – वैशाली के पास संघर्ष की अवधि में अजातशत्रु ने पाटलीपुत्र की स्थापना की।
  • – अजातशत्रु  के काल में 483 ई. पूर्व में महाकश्यप की अध्यक्षता में राजगृह की सप्तवर्णी गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ जिसमे आनंद व उपाली द्वारा सुत्तापिटक व विनय पिटक ग्रंथो की रचना हुई।
  • – महात्मा बुद्ध व महावीर स्वामी की निर्वाण प्राप्ति अजातशत्रु के काल में हुई थी।
  • – जैन साहित्य के अनुसार राजकुमार उदायीन, उदायीभद्र ने अजातशत्रु की हत्या कर दी ।

उदायीन ( 462 ई. पूर्व से 445 ई.पूर्व )-

  • – चम्पा का गवर्नर
  • – इसने सर्वप्रथम पिता की हत्या व राजगृह में पाटलीपुत्र राजधानी का स्थानांतरण किया
  • – उदायीन के काल में अवन्ती की शक्ति चरम सीमा पर थी। और दोनों राजयों के मध्य साम्राज्यवादी नीति के फलस्वरूप अनिर्णायक युद्ध हुए।
  • – बिम्बिसार में गिरिवृज/ वसुमती के स्थान पर राजगृह को राजधानी बनाया तो उदायीन की सबसे बड़ी उपलब्धि गंगा व सोन नदी के बीच पाटलीपुत्र ( 547 ई. पूर्व ) रूप में राजधानी परिवर्तन रहा।
  • – भास की स्वप्नवासवदता के अनुसार नागदर्शक हरियाक वंश का अंतिम शासक था जिसका उसी के मंत्री व काशी के राज्यपाल शिशुनाग ने हत्या करके शिशुनाग वंश की नीव डाली। पुराणों के अनुसार उदायीन के पश्चात नंदिवर्धन व महानंदी बौद्ध ग्रंथो के अनुसार अनिरुद्धमुण्ड व नागदशक ने 32 वर्षो तक शासन किया।
  • – हर्यक वंश के सभी शासक जैन मताबलंबी थे। तथा श्रीलंका बौद्ध ग्रंथो के अनुसार बिम्बिसार से नागदशक तक मगध के सभी शासक पितृहंता थे।

शिशुनाग वंश ( 414 ई. पूर्व से 344 ई. पूर्व तक )-

– संस्थापक- शिशुनाग 

– प्रारम्भिक पद काशी का राज्यपाल व नागदशक का अमात्य / मंत्री 

नोट: जैन ग्रंथो के अनुसार शिशुनाग वैशाली के राजा व नगरवधू से उत्पन्न पुत्र या जिसकी रक्षा नाग ने की थी। इसलिए इसका नाम शिशुनाग पड़ा। 

– बौद्ध ग्रंथो के अनुससर शिशुनाग ने 18 वर्ष जबकि पुराणों के अनुसार शिशुनाग ने 40 वर्ष शासन किया। 

– शिशुनाग के काल में सबसे प्रमुख घटना अपनी राजधानी को वैशाली स्थानांतरित करनी थी। इसके अलावा शिशुनाग ने अवन्तीवर्धन को हराकर अवन्ती को मगध शासन में मिला लिया। 

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काकवर्ण / कालाशोक ( 394 ई.पू. से 366 ई.पू. )-

  • ‘बनारस‘ व ‘गया’ का प्रशासक।
  • – राजधानी वैशाली से पाटलिपुत्र मे परिवर्तन ।
  • – अशोक के काल ( 383 ई.पू. ) मे वैशाली की गुफा मे द्वितीय बौद्ध संगति मे स्थाविर व महासंधिक मे बौद्ध धर्म का विघटन।
  • – महाबोधि वंश के अनुसार कालाशोक के पश्चात एक साथ उसके 10 पुत्रो ने शासन किया। जिसमे नंदीवर्धन नामक शासक का उल्लेख पुरानो मे मिलता है।
  • – नंदिवर्धन/ महानंदी ही शिशुनाग वंश का अंतिम शासक था।

नन्द वंश का उत्थान व पतन ( 344 ई. पू. से 323 ई.पू. )-

संस्थापक – महापदमनन्द / उग्रसेन 

जाती – संभवत: नाई ( शूद्र जाती ) 

उपाधिया – पुरानो के अनुसार सर्वक्षत्रान्तक व द्वितीय परशुराम। 

– महापदमनन्द ने कलिंग मे एक नहर का निर्माण भी करवाया था। 

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घनानन्द-

  • – यह सिकंदर के समकालीन था।
  • – महापदमनन्द के पश्चात 9 नन्द राजाओ ने 22 वर्ष तक शासन किया, जिसका अंतिम शासक घनानन्द था।
  • – भद्रशाल, सकटाल व राक्षस आदि मुख्य सेनापति थे।
  • – घनानन्द अत्यंत अत्याचारी शासक था जिससे जनता पीड़ित थी और मुक्ति का उपाय ढूंढ रही थी और इनहि पारिस्थतियों का लाभ उठाते हुए विष्णुनामक गुप्त ब्राहांण ने नन्द वंश के ढलते सूर्य को हमेशा के लिए अस्त करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यही विष्णुगुप्त कालांतर मे चाणक्य, कौटिल्य के नाम से जाना गया।
  • – प्रथम साम्राज्यवादी वंश हर्यक वंश माना जाता है तो मगध के नेतृत्व मे सम्पूर्ण उत्तरी भारत व दक्षिणी के कुछ भाग को एक राजनीतिक सूत्र मे बांधने का कार्य तथा पाटलीपुत्र को उत्तरी भारतीय राजनीति का केंद्र बनाने का कार्य नन्द वंश ने किया ना केवल मगध साम्राज्यवाद का विस्तार नंदकाल मे हुआ बल्कि विदेशी आक्रमणकारी विशेषकर ‘यवन’ ( सिकंदर ) व ईरानी ( हखामनीवंश ) के समक्ष द्वारपाल के रूप मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला वंश भी नन्द वंश था।
  • – इस अवधि के दौरान भारत मे जहां मगध साम्राज्यवाद का विस्तार हो रहा था। उसी समय पश्चिमोत्तर भारत को राजनीतिक अस्थिरता के कारण विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करना पद रहा था। इस राजनीतिक विश्र्नखलता का लाभ उठाते हुए इरानियों व यूनानियों ने भारत पर आक्रमण किये जिसका स्थायी राजनीतिक परिणाम तो नहीं निकला लेकिन भारतीय संस्कृति को प्रभावित करने मे ये आक्रमण सफल रहे।     

यह भी पढे :

Buddhism – बौद्ध धर्म

Jainism – जैन धर्म

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